हाँ भाई देखी है .........

हाँ भाई देखी है

मैने गरीबी देखी है
फटी साड़ी किसी की तन छुपाने की कोशिश देखी है .
सर्द  रात में कहीं एक आड़ मिल जाने की आस देखी है .
फटे पुराने टाट पर कभी नींद से बतियाती आँखें देखी हैं.
नाले के किनारे कहीं दूर ,तंग कुचैली गलियों में बीतती जिंदगी देखी है .

हाँ भाई देखी है

मैने मज़बूरी देखी है
एक अदद चाय और बंद में बादिन चलने वाली नौकरी देखी है .
पहन कर मालिक की उतरन कभी चहरे पर आई ख़ामोशी देखी है .
धुंवे भरे चूल्हे पर किसी सिकती रोटी में चोकर की बढ़ती तादाद देखी है .
आगे बढ़ते ज़माने के साथ ,सिकुड़ते जाते आशियानों की चार दीवार देखी है .

हाँ भाई देखी है

मैने बेकारी देखी है
सडकों पर, बसों पर भिनभिनाती हुयी, भटकती जूतियाँ देखी हैं .
भोर सुबह चौराहों पर काम तलाशती कुछ मेहनतकश लाचारी देखी है.
माँगे हुए अखबार में इश्तहार तलाशती कुछ गुमसुम उंगलियाँ देखी हैं .
बाप से नज़रें चुराती,ठोकर-ए - हालत खाकर घर लौटी बेबस जवानी देखी है .

हाँ भाई देखी है

मैने गरीबी देखी है
मैने मज़बूरी देखी है
मैने बेकारी देखी है …

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