संदेश

अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

तुम्हारी यादों की तरह अपने निशां क्यूँ छोड़ गई हो ?

सुनो तुम चली तो गई हो पर तुम्हारी यादों की तरह अपने निशां क्यूँ छोड़ गई हो तुम ? कल सुबह कालीन की धूल की मानिन्द अपने मन से तुम्हारे खयाल झाड़ रहा था मै   उस कालीन पर   तुम्हारी यादों की तरह अपने केसु क्यूँ छोड़ गई हो तुम  ? पुराने तौलिये की मानिंद तुम्हारे साथ बीते लम्हों को कहीं अंधेरी दराज़ में रख रहा था मै उस तौलिये पर तुम्हारी यादों की तरह अपनी महक क्यूँ छोड़ गई हो तुम ? आईने पर जमी गर्त की मानिंद तुम्हारी बातें जहन से मिटा रहा था मै उस आईने पर तुम्हारी यादों की तरह अपनी परछाई क्यूँ छोड़ गई हो तुम ? बिस्तर पर जमीं सलवटों के जैसे तुम्हारी सूरत   दिल से मिटा रहा था मै उस बिस्तर पर तुम्हारी यादों की तरह अपनी छुवन क्यूँ छोड़ गई हो तुम ?   सुनो तुम चली तो गई हो पर तुम्हारी यादों की तरह अपने निशां क्यूँ छोड़ गई हो तुम ?