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ई ससुरा समाज भय्या !!

का बताई तोहके ई ससुरा समाज भय्या !! ना बाप बड़ा न भय्या ,सबसे बड़ी पंचातिया !! आएगा लल्ला वो दौर ,फिर लगेगा ज़जिया !! अचरज होगा जान सुल्ताना थी कभी रज़िया!! भला बाम्हन हो, छत्री या भोला कोई बनिया!! न भाती किसी को कोख से निकली बिटिया !!     

हाँ भाई देखी है .........

हाँ भाई देखी है मैने गरीबी देखी है फटी साड़ी किसी की तन छुपाने की कोशिश देखी है . सर्द  रात में कहीं एक आड़ मिल जाने की आस देखी है . फटे पुराने टाट पर कभी नींद से बतियाती आँखें देखी हैं. नाले के किनारे कहीं दूर ,तंग कुचैली गलियों में बीतती जिंदगी देखी है . हाँ भाई देखी है मैने मज़बूरी देखी है एक अदद चाय और बंद में बादिन चलने वाली नौकरी देखी है . पहन कर मालिक की उतरन कभी चहरे पर आई ख़ामोशी देखी है . धुंवे भरे चूल्हे पर किसी सिकती रोटी में चोकर की बढ़ती तादाद देखी है . आगे बढ़ते ज़माने के साथ ,सिकुड़ते जाते आशियानों की चार दीवार देखी है . हाँ भाई देखी है मैने बेकारी देखी है सडकों पर, बसों पर भिनभिनाती हुयी, भटकती जूतियाँ देखी हैं . भोर सुबह चौराहों पर काम तलाशती कुछ मेहनतकश लाचारी देखी है. माँगे हुए अखबार में इश्तहार तलाशती कुछ गुमसुम उंगलियाँ देखी हैं . बाप से नज़रें चुराती,ठोकर-ए - हालत खाकर घर लौटी बेबस जवानी देखी है . हाँ भाई देखी है मैने गरीबी देखी है मैने मज़बूरी देखी है मैने बेकारी देखी है …

ये समाज ???

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ये तीन टाँगों पर लंगड़ाते श्वान सा शिथिल समाज , क्यों है बैठा अब ये इतना विचलित सा , समाज ? इस बार तो फिर अच्छा चल पड़ा है काम काज , खाली ठेकेदार को सीधा दुनिया का मिला ठेका आज ।  ब्याह से भागती बेटियों को पकड़ना है इनका काम , बचकर रहे ,रहनुमा-ऐ-सरकार ,कह दिया खुले आम ।  'बिगड़ती' बालाओं  को  सुधारते ये  सरेशाम , गालियों ,तानों से न हो तो फाँसी के फंदे से लेते काम ।  ये भटकते भिक्षुक सा बेचैन समाज  क्यों है इतना ये संगदिल समाज ? इस बार तो हो रहे राजनीतिज्ञ भी साथ , जाति को तो नंबर प्लेट बनाने की है बात ।  पहले ही बता दो मेरे  भाई अहीर, छत्री हो या चर्मकार , फिर ना कहना ,आरक्षण नहीं बाँटा ,किया अत्याचार ।  जाति में ही सब रहेगा ,जाति में ही सब बँटेगा , यही है हमारा किला ये हमारी चार दीवार ।  रक्त 'गंदा' जो किया किसी ने तो , कंठ देगी काट उसका ये तीक्ष्ण तलवार ।  ये तीन टाँगों पर लंगड़ाते श्वान सा शिथिल समाज , क्यों है बैठा अब ये इतना विचलित सा , समाज ???