चली गईं थीं तुम.......

ईंटें देखता हूँ तो समेट लेता हूँ मै
इक छत का अरमां था न तुम्हे
खुशियाँ कैद करने को आशियाँ बना लेता हूँ मै
पर चली गईं थीं तुम
काश होती तो एक ईंट तुम्हारे नाम की समेट लेता


भटकते तिनके उठा लेता हूँ मै
हवाओं में बसने की तमन्ना थी न तुम्हे
सपनों में देखा वो हवाई महल बना लेता हूँ मै
पर चली गईं थीं तुम
काश होती तो एक तिनका तुम्हारे नाम का उठा लेता

गिरती बूँदें झोली में भर लेता हूँ मै
बरसात पसंद थी न तुम्हे
अपने खुद के बादल बना लेता हूँ मै
पर चली गईं थीं तुम
काश होती तो एक बूँद तुम्हारे नाम की भर लेता

परिंदों से दोस्ती करता फिरता हूँ मै
उनका चहचहाना पसंद था न तुम्हे
अब इन्हे ही अपनी दास्ताँ सुना लेता हूँ मै
पर चली गई थीं तुम
काश होती तो एक दोस्त तुम्हारे नाम का बना लेता मै

कभी पास से गुजरे कुछ खूबसूरत लम्हे खरीद लेता हूँ मै
साथ वक़्त बिताना भाता था न तुम्हे
मगर  माहौल ग़मगीन है , आज जनाज़ा है मेरा
चली गईं थीं तुम
काश होती तो कुछ लम्हे ज़िन्दगी के और उधार ले लेता मै

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