जंतर मंतर में अन्ना के साथ एक दिन

भारत छोड़ो आंदोलन लें या खिलाफत लहर ,जे पी क्रांति लें या लोहियावाद किसी भी अन्य आन्दोलन को लें यह वर्तमान में चल रहा "अन्ना आन्दोलन " अपने में अनुपम तो है ही इसके साठ साथ इसमें जन भागीदारी को भी कोई नकार  नहीं सकता .ख़ैर जहाँ तक इसके स्वरुप की बात है तो कई विशेषज्ञ तो इसे कोई आन्दोलन कहने से भी इनकार कर रहे हैं और इसे मात्र एक लहर का दर्ज़ा दे रहे हैं 

अब जो भी हों मैं यह लेख ऐसा कोई बुद्धिजीवी वार्तालाप चलाने  के लिए नहीं लिख रहा हूँ ,अपितु आपको एक रिपोर्टर की ही तरह जंतर मन्तर पर अन्ना हजारे के अनशन के दौरान बिताए गए एक दिन का हाल ए बयां सुनाने के लिए लिख रहा हूँ .तो चलिए जनाब शुरू करते हैं अपनी दास्तानगोई.

भीड़ भाड़ वाला एक दिन दिल्ली की सड़कों में रोज़ाना की मानिंद अस्त व्यस्त ट्रैफिक ,किसी आम दिन की ही तरह ठुसी हुई मेट्रो रेलें , सड़कों में भीड़ ,अस्पातालों में भीड़ ,दफ्तरों में भीड़ ,विद्यालयों में भीड़ ...अब आप कहेंगे इन  सब जगहों में  भीड़ का होना तो कोई आम बात नहीं और फिर दिल्ली जैसे डशहर में जो कि एक सो बीस करोड़ की आबादी के देश की राजधानी हों और खुद भी डेढ़ करोड़ संघर्षशील लोगों को अपने में समाये हुए हों वहाँ तो यह अति सामान्य है ..परन्तु आगे तो सुनिए जनाब जंतर मंतर में भी भीड़ !! अरे भाई उसमे कौन सी नई बात है ..वह तो जगह ही बनी है की भीड़ करो और शोर मचाओ फिर किसी को पता चले ना चले समझ ए ना आये वह बाद की बात है ....मगर यह कोई साधारण भीड़ नहीं थी यह लेखक  स्वयं गवाह है उस तारीख का जब लगभग दस हज़ार से अधिक लोग अन्ना को समर्थन देने जंतर मंतर उमड़े थे ...फिर रहा होगा जे पी के छात्र आन्दोलन का समय .पर  अब आज की युवा पीढ़ी ने तो कभी इतनी भीड़ ऐसे  काम के लिए नही देखी होगी ..इन लोगों ने तो बस आई पी एल के मैचों में और दशहरे के मेलों में ही ऐसी बिन बुलाई भीड़ देखी होगी (नही तो" विशेष प्रबंध" कर राजनैतिक रैलियों के लिए लाखो की भीड़ बुलाना भी इस देश में कोई असाधारण घटना नहीं !  ) 

अब ज़रा इस भीड़ पर अपनी एक सरसरी निगाह तो फेर लें .यहाँ कई राजनैतिक चेहरे भी दिखे तो कई ग्रहणियाँ भी , कोई दफ्तर बीच में छोड़कर आये शर्मा जी तो कोई लोगों तो लोकपाल बिल के विषय में ज्ञान बांटते गुप्ता जी भी .सुखद आश्चर्य तो यह था कि इस तरह की बुद्धिजीवी गतिविधियों (intellectual activity) जिसे की प्रायः हमारा युवा वर्ग "बोर" की संज्ञा देता है  ,होने के बाद भी इसमें काफी बड़ी युवा भागीदारी थी ,अब चाहे वह कोलेज में पढ़ने वाले लड़के लड़कियाँ हों ,या फिर बहुराष्ट्रीय कंपनियों के  युवा पेशेवर  सभी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई .जहाँ एक ओर व्हील चेयर पर बैठे एक विकलांग सरदार जी लोगों का उत्साह बढ़ा रहे थे तो वहीँ दूसरी ओर एक वृद्ध अपने जोश का प्रदर्शन शंख बजा कर कर रहे थे ,मानो आधुनिक कृष्ण अपने युवा अर्जुनों का आह्वान कर रहे हों कि "आओ पार्थ !... एक बार पुनः सृष्टि ने तुमसे बलिदान माँगा है ..भूल जाओ कि ये भ्रष्टाचारी नेता तुम्हारी ही मातृभूमि के हैं ,भूल जाओ कि यह करोडो का गबन करने वाली  बेशर्म आत्माएं  तुम्हारे ही राष्ट्र में रहती हैं .तुम तो बस रणभेरी को सुनो .धनुष उठाओ और बैरी पर निशाना साधो !"

अब आते हैं मीडिया की भूमिका पर .अब  यदि मैं कहूँ कि यह प्रथम दृष्टया  एक मीडिया प्रायोजित आन्दोलन ही था तो अतिशयोक्ति नहीं होगी . और यहाँ बहुत दिनों बाद कुछ सकारात्मक प्रयास् किया गया है मीडिया द्वारा तो हमें इसकी सराहना ही करनी चाहिए .हमें ध्यान रखना चाहिए कि हमारा भारतीय मीडिया ,खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया अभी बिलकुल भी परिपक्व नहीं हुआ है और "बी बी सी" या  "डोएच वेले " जैसे अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त चैनलों से अभी भी इनकी तुलना नहीं की जा सकती  ..स्मरण रहे कि यह वही मीडिया हाई जिसने एक  "प्रिंस " के गिरने को राष्ट्रीय महत्व की खबर बना दिया था और लाइव कवरेज डी थी ,यह वही मीडिया हाई जो धरती के 2012 तक नष्ट होने की रिपोर्ट  दिखाते हैं  हैं और स्वयं अपने प्रायोजकों से तीन साल की एडवांस पेमेंट की मांग करते हैं .अब यदि ऐसा मीडिया दिन के 24 घंटों में से 20  अन्ना को कवर करता भी हाई तो क्या गलत है ,भाई ऐसी खबरें उन सौ बकवासों से लाख अच्छी है जो कि नित्य ही हमें परोसी जाती है .

अरे वापस लौटते हैं अन्ना के आन्दोलन पर ,अब यह तो था आये हुए समर्थकों का हाल अब माहौल का भी वर्णन हों जाये ,तो मित्रों माहौल तो था बहुत ही गरम , आधी भीड़ तो अन्ना को देखने के लिए आतुर कड़ी थी ,इतने लोग थे कि भगदड़ मचने की पूरी संभावना थी ,कुछ लोग नाचने में मश्गूल थे (जाने किसने ढोल नगाडों को बुला दिया था ,शायद "मीडिया वालों" ने ही थोडा मसाला बढ़ाने को !  )  तो कहीं से यज्ञ का धुंवा  उड़ रहा था जहाँ  कि नेताओं को श्राप देने के लए आहुतियाँ चढाई जा रही थी . कही कोई तमिल रिपोर्टर  जल्दीबाजी ,में कुछ पंक्तियां अन्ना के ऊपर तो समकालीन माहौल ( चुनावी ) को देखते हुए कुछ बातें चुनावों की भी कर रहा था .एक बात अच्छी लगी लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति का इज़हार बड़े ही खुल कर हस्त लिखित  पोस्टर ,बैनरों से भी किया .एक बंधू तो इसी कार्य में लगे थे कि कलम उठाये कागज पर अपनी सुन्दर लिखनी से लोगों के लिए उनके मनपसंद नारे लिख रहे थे ,पूरे मैदान में उन्ही के लिखे कोलेजिया लड़को वाली शैली में "anna rocks !" जैसे हल्के फुल्के पर अनोखे , तो कभी "अन्ना तुम आगे बढ़ो, हम तुम्हारे सात हैं ! " जैसे नियमित पर जोशीले नारे घ्होम रहे थे जो कि कई कैमरामेन्स के आकर्षण का केन्द्र भी बने हुए थे ,कुछ स्कूली बालक तो अपने पोस्टर लिए कैमरा कर्मियों की पीछे तब तक भाग रहे थे ,जब तक कि वे उनकी दो एक तस्वीर खीच ना दें .

ख़ैर ये तो सब सकारात्मक पहलू थे अब कुछ नकारात्मक बातें भी  .हद से ज्यादा  "मीडियाकरण" के कारण यह आन्दोलन अपना मूल उद्देश्य कई बार भटक गया ,कई लोग तो  सच में मात्र पब्लिसिटी के लिए ही आये थे .अब इनमें मात्र कुछ सेलिब्रिटी हि नहीं बहुत से लोग थे .मेरे सामने कुछ सजी धजी ,आधुनिक परिधानों से सुसज्जित, सन ग्लास चढ़ाये (धूप तो थी ही !) कुछ कोलेज की बलाए हाथों में अंग्रजी की तख्तियां लिए एक क्वालिस से निकलीं और बड़े ही शालीन ढंग से नारे बजे करने लगीं ,देखते ही देखते कई कैमरे जो कि अभी तक चिल्लाते बूढों और नारे लगाते ग्लैमरलैस लोगों को शूट कर  रहे थे वह सभी इस आकस्मिक  'मसाले' की ओर मुड गए ,अब यह आश्चर्य जनक  नहीं था कि अगले ही दिन मैने उन सभी बालाओं का चित्र एक ऐसे ही लिपे पुते चेहरे तलाश करने और छापने  के लिए कुख्यात  समचार पत्र में देखा .
इसके अतिरिक्त जमकर दिखावा भी हों रहा था ,देश के नाम पर कई संस्थाएं स्वयं का प्रचार कर रही थीं ,यह मुफ्त का प्लेटफोर्म देख कर .उनकी तख्तियों पर नारों से ज्यादा बड़ा उनकी संस्थाओं का नाम और संपर्क अंकित था .कुछ "आन्दोलनकारी  " तो चिल्ला भी मात्र उसी समय रहे थे जब उनके सामने कोई  कैमरा आ जाता .

चलिये अब जैसा भी हों ,रोचक और उद्देश्यपूर्ण तो था ही जंतर मंतर में अन्ना के साथ एक दिन  

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